शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

प्याज का मोल -
एक बार सामना हुआ प्याज से
मैंने पुछा तू क्यूँ इतराती है इतना शान से
कभी गरीब पाकर  तुझे सुकून आता था
नमक प्याज से रोटी खाकर मस्त हो सो जाता था .
अब उसके बच्चे सूखी रोटी खाते है ,
सब्जी न नमक ,प्याज सबसे वंचित रहे जाते है
माध्यम वर्ग की पहुँच में भी नहीं है अब प्याज
एक हसरत भरी नज़र से देखते है तुझे वे आज
प्याज के ठेली से बचके निकलते है
कोई दिलवाले ही उस ठेली पर रुकते है
एक लड़के वाले के लड़की के पिता से की डिमांड
न गाड़ी न नगदी बस प्याज की करी मांग
शादी के खाने बस प्याज हो
बारातियों को शगुन में प्याज दो
बेचारा लड़की का पिता कैसे करे लड़की की शादी
इस महंगाई में कैसे मांग पूरी करे अजब निराली
शर्मा जी के लड़के के रिश्ते बहुत आ रहे है
क्यूंकि वे बाजार में प्याज खरीदते देखे जा रहे है
जरूर पुश्तैनी धन पाया है तभी तो आज प्याज खरीद पाया है
वर्मा जी की बेटी का रिश्ता नै हुआ क्यूंकि लड़के वालो की मेहमानदारी में प्याज शामिल नहीं हुआ ,
आज समाज में वाही सम्मान पता है जो भोजन में प्याज शामिल कर पता है
प्याज ने कहा देखा मेरा बोल बला  ?
अब खेत की भूमि पर भवन मत बनाना
खेतों में सब्जी वे प्याज उगाना
इनका आयात नहीं निर्यात करो
विदेशी मुद्रा कमाकर देश को समृद्ध करो .
चूहों का अधिकार
एक देसी चूहा जो बहुत धनि था .
अनाज से भरा गोदाम जिसे किस्मत से मिला था ,
अच्छा ख़ासा बड़ा परिवार था ,उसमे हर चूहा मोटापे का शिकार था .
क्यूंकि बिना मशक्कत के पेट भर रहा था ,
दोड़ना बिलकुल नहीं पड़ रहा था .
अतः डॉक्टर ने प्रातः भ्रमण की सलाह दी  ,
तथा हाजमे की कुछ दावा लिख दी .
एक दिन मुख्या चूहे के विदेशी मित्र का फ़ोन आया ,
भोजन के लिए इतनी मशक्कत करता हूँ ,
फिर भी परिवार सहित भूखा मरता हूँ .
यहाँ का आदमी बड़ा चतुर है ,अनाज बड़ा संभल कर रकता है .
हमारे प्रवेश पर प्रतिबंद लगा है ,
एक दाने तक हमारी पहुँच नहीं है .
दोस्त ने समझाया ,फ़ौरन उसे भारत बुलाया .
देख मेरे दोस्त यह देश निराला है ,
राजनीति का यहाँ  बोल बाला है .
यहाँ अनाज तो बहुत होता है ,
पर उसे गोदाम नसीब नहीं होता है ,
आदमी भूका मरता है ,हम चूहों का पेट भरता है .
तुम जल्दी यहाँ चले आओ ,संग में कुत्म्बियों को भी ले आयों .
यह अन्न न गरीबो में बटेगा ,न बाजार में बिकेगा .
कम से कम सड़ने से तो बचेगा .
अन्न देवता का  अपमान तो न होगा .
वैसे भी हम तो इनके अराध्ये गणपति की सवारी है .
इतना पाने के तो हम अधिकारी है .

बुधवार, 18 सितंबर 2013

गुरुत्व का कर्त्तव्य 
प्रांगण में गुरु की कृपा के ,
विकास पाते है शिष्य रुपी पोधे
उन अनुभवी हथों से माली के ,
सुरक्षित देख भाल वे प्यार के सहारे
ये अंकुरित होते वे जाते है सवाँरे
ये रिश्ता होता बड़ा अटूट और निराला
बिना किसी सम्बन्ध के भावनाओं से पाला
विशवास पर टिका ये नहीं कोई समझोता
अपनत्व से  भरा ये नहीं कोई औपचारिकता
शिल्पकार बन कभी गुरु गढ़ता है उनको
हथोडी की चोट सम दंड देता है उनको
विकार सब दूर करने को
जीवन पथ के लिए तैयार करने को
कभी आँखे दिखता कोप कर
कभी मधुर स्पर्श देता प्यार कर
बिना किसी स्वार्थ के इनका वेह हितचिंतक
आगे बढ़ता इन्हें सन मार्ग पर
हमारी भाषा हिंदी 
हिंदी है हमारी
संवेंदनाऊँ से बंधी न्यारी
हृदय की अभिव्यक्ति का स्त्रोत
भारतियों की नैनो की ज्योत
जब अपनी भाषा में हम
अपनों से सुख दुःख है बांटते हम
इसका अपनत्व ही कर देता है कुछ दुःख कम
वक्त के मनसा हो जाता है श्रोता का मन
अपनी भाषा का अनुभव
ममत्व भरे आँचल सा निर्मल
अन्य भाषाएं जरूर
मगर अपनी भाषा से रहे न दूर
माँ की लोरी की मिठास रहेती है इसमें
पिता का दुलार स्नेह भरता है बालमन में
भाई बेहेन के मीठी झड़प
दोस्तों की बेताकलोफ्फ़ बहस
मिठास घोलती है अपनी भाषा में
सह्रदयता है उपजती अपनत्व की धुप खिलती
अनुभूतियों का आदान प्रदान
कर देता है समस्त ग्रंथियों का निदान
एक दिल की आवाज़ दुसरे की बन जाती
अपनी भाषा में कही बात सब की बन जाती
जड़ों से गर जुड़े रहे तो शक्तिमान बनेगे
एकता के सूत्र में बंधे कुश्हाल बनेगे
एक दिन जीत जाता है तूफ़ान से जड़ों से जुदा पोधा
भाषा संस्कृति से जुड़े देश का नहीं कर सकता कोई सौदा

सोमवार, 2 सितंबर 2013

मेरे देश में ..........
 संस्कृति का धनि था ,जगत का गुरु था।
स्वर्ण चिड़िया चैहकती थी मेरे देश में।
पूजी जाती थी धरती  ,पहाड़ और नदी,
सम्मान पाती थी नारी कभी मेरे देश में।
धनं-अन्न से भरा था ,कही न कोई गम था,
इन्साफ पता था इंसान,कभी मेरे देश में।
आज उजड़ी है धरती ,नदियाँ है मैली,
खुदे रोते है पर्वत मेरे देश में।
नर बहेशी हुआ ,मन पापी हुआ,
आज नारी असुरक्षित मेरे देश में।
सब्जी मेहेंगी यहाँ ,अन्न मेहेंगा हुआ,
तेज़ाब सस्ता बड़ा है मेरे देश में।
ज़िन्दगी की यहाँ कोई कीमत नहीं ,
आज मौत है सस्ती मेरे देश में।
आज जनता के दुःख सुख से है बेखबर,
सत्ता कुर्सी के पुजारी मेरे देश में।
आज आजायें गर शहीद आजादी के ,
क्या न रोयेंगे इस हालत पे मेरे देश में।

रविवार, 1 सितंबर 2013

केदार का सन्देश                                                                                                                                                              केदारनाथ बाबा क्यूँ रुष्ट हो गए ,अपने भक्तो को क्यूँ जख्म दे गए।
प्रलये के बादलो को क्यूँ तब ही बरसना था ,भक्तो को क्यूँ इतना कथोर्दंड देना था।
प्रलायेकारी नेत्र  खोलने का यही समय पाया ,अपनी पवित्र देश भूमि लाशों का ढेर लगाया
आहत हुए कितने बेक़सूर ,बूढ़े जवान बच्चे,क्यूँ तुम्हे दया नहीं आई सब देख और समझके।
कहते है तुम्हारे दर से झोलियाँ भारती है ,बिन करे ही भक्तों की तकदीरे सवरती है।
आज किस अपराध की सजा दे डाली ,इन मासूमों की ज़िन्दगी नर्क बना डाली।
दुनिया में जो पाप कर रंगरलियाँ मनाते है ,दूसरो के खून से चिराग जलाते है।
क्यूँ तुम्हारी तिरछी नज़र उन पर नहीं पड़ी ,क्यूँ उनकी काली करतूत तुमसे रही छूपी।
अगर मिटाना ही था ओ तो इस भ्रस्ताचार को मिटाते ,गरीबों की पेट की भूख को मिटाते।
इतना सुन बाबा ने नैना खोले ,और आँखों में आसूँ भर कर इंतना ही वो बोले।
चाहता तो यही था दुष्टों को नष्ट करता ,जिस विमान में वो होते उसी को नष्ट करता।
लेकिन सोचता हूँ की इन घटनायों से इंसान सीखे ,दुःख की घडी में एक हो ,ब्राह्त्री भाओं सीखे।
एक दुसरे के दर्द को अपना दर्द बना ले ,दुसरो की मदद को खुद को हाज़िर कर दे।
ये जख्म तो भर जायेंगे ,फिर से चमन में फूल खिल जायेंगे।
गर मन की मैल मिट गयी ,तो घट मे ही केदार दर्शन हो जायेंगे।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

sawan or teej

तीज 
फिर आया  वो  सावन  सुहाना 
जिसकी यादे  मुश्किल  है   भुलाना 
पेडो पे झुले 
उन्हें केसे भूले 
अम्बर के बदरा 
नेनो मैं कजरा 
चहु ओर   हरियाली 
 
बालाओ  की चुनरी गोटे वाली 
माटी में फूटे बीज 
लो फिर आगयी तीज ,
हाथ वो मेह्न्दीवाले ,
सावन के गीत वो निराले ,
आज  
सावन तो है नहीं है झूले ,
बालाओं ने जींस टॉप है पहना 
उनके पास नहीं चुनरी और लहंगा ,
हाथो में ना मेहँदी ना चूड़ी  
कॆसे याद रहे उन्हें ये तीज 
टेंसन ही बन गई अब तो प्रीत 
केसे गुनगुनाये सावन के गीत 
अब तो सावन कब आता है 
बस इन्क्रीमेंट 
 का महिना याद रहा जाता है